बहुत नज़दीक थे तस्वीर में हम
मगर वो फ़ासला जो दिख रहा था
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धुँद है या धुआँ समझता हूँ
हो दिन कि चाहे रात कोई मसअला नहीं
इक परिंदा शाख़ पर बैठा हुआ
मेरी तरफ़ सभी कि निगाहें थीं और मैं
जहाँ तक डूबने का डर है तुम को
तन्हा तन्हा सहमी सहमी ख़ामोशी
गामज़न हैं हम मुसलसल अजनबी मंज़िल की सम्त
बस एक धुन थी समुंदर को पार करने की
तिश्नगी पीने की शब थी
क्या किसी बात की सज़ा है मुझे
कभी सोचूँ कि ख़ुद मैं लौट आऊँ