कभी सोचूँ कि ख़ुद मैं लौट आऊँ
कभी सोचूँ कि ऐसा क्यूँ करूँ मैं
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मिरा वजूद जो पत्थर दिखाई देता है
इक साया मेरे जैसा है
जहाँ तक डूबने का डर है तुम को
बला की धूप थी मैं जल रहा था
धुँद है या धुआँ समझता हूँ
हादसा कौन सा हुआ पहले
तिश्नगी पीने की शब थी
मेरी तरफ़ सभी कि निगाहें थीं और मैं
बहुत नज़दीक थे तस्वीर में हम
आहों की आज़ारों की आवाज़ें थीं
हादिसा कौन सा हुआ पहले
हो दिन कि चाहे रात कोई मसअला नहीं