उम्र भर दुख सहते सहते आख़िर इतना तो हुआ
अपनी चुप को देख लेता हूँ सदा बनते हुए
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बहुत उदास हो तुम और मैं भी बैठा हूँ
मोहब्बत मर गई 'मुश्ताक़' लेकिन तुम न मानोगे
यार सब जम्अ हुए रात की ख़ामोशी में
इश्क़ में कौन बता सकता है
थम गया दर्द उजाला हुआ तन्हाई में
भूले-बिसरे मौसमों के दरमियाँ रहता हूँ मैं
शाम होती है तो याद आती है सारी बातें
ये कौन ख़्वाब में छू कर चला गया मिरे लब
चश्म ओ लब कैसे हों रुख़्सार हों कैसे तेरे
यही दुनिया थी मगर आज भी यूँ लगता है
रौशनी रहती थी दिल में ज़ख़्म जब तक ताज़ा था
ज़ुल्फ़ देखी वो धुआँ-धार वो चेहरा देखा