तुम आए हो तुम्हें भी आज़मा कर देख लेता हूँ
तुम्हारे साथ भी कुछ दूर जा कर देख लेता हूँ
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मिलने की ये कौन घड़ी थी
उम्र भर दुख सहते सहते आख़िर इतना तो हुआ
बहता आँसू एक झलक में कितने रूप दिखाएगा
होती है शाम आँख से आँसू रवाँ हुए
कहूँ किस से रात का माजरा नए मंज़रों पे निगाह थी
भागने का कोई रस्ता नहीं रहने देते
गुज़रे हज़ार बादल पलकों के साए साए
ये तन्हा रात ये गहरी फ़ज़ाएँ
हम उन को सोच में गुम देख कर वापस चले आए
अब न बहल सकेगा दिल अब न दिए जलाइए
इक उम्र की और ज़रूरत है वही शाम-ओ-सहर करने के लिए
हमारा क्या है जो होता है जी उदास बहुत