हमारा क्या है जो होता है जी उदास बहुत
तो गुल तराशते हैं तितलियाँ बनाते हैं
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लाग़र हैं जिस्म रंग हैं काले पड़े हुए
जहान-ए-इश्क़ से हम सरसरी नहीं गुज़रे
चाँद भी निकला सितारे भी बराबर निकले
अब न बहल सकेगा दिल अब न दिए जलाइए
बहुत उदास हो तुम और मैं भी बैठा हूँ
वो जो रात मुझ को बड़े अदब से सलाम कर के चला गया
अरे क्यूँ डर रहे हो जंगल से
जब शाम उतरती है क्या दिल पे गुज़रती है
भूल गई वो शक्ल भी आख़िर
तुम आए हो तुम्हें भी आज़मा कर देख लेता हूँ
वहाँ सलाम को आती है नंगे पाँव बहार
ये वो मौसम है जिस में कोई पत्ता भी नहीं हिलता