गुज़रे हज़ार बादल पलकों के साए साए
उतरे हज़ार सूरज इक शह-नशीन-ए-दिल पर
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पानी में अक्स और किसी आसमाँ का है
मिल ही जाएगा कभी दिल को यक़ीं रहता है
कहाँ की गूँज दिल-ए-ना-तवाँ में रहती है
मिल ही आते हैं उसे ऐसा भी क्या हो जाएगा
धुएँ से आसमाँ का रंग मैला होता जाता है
जहाँ डाले थे उस ने धूप में कपड़े सुखाने को
रुख़्सत-ए-शब का समाँ पहले कभी देखा न था
अजब नहीं कभी नग़्मा बने फ़ुग़ाँ मेरी
वो वक़्त भी आता है जब आँखों में हमारी
हमारा क्या है जो होता है जी उदास बहुत
हर लम्हा ज़ुल्मतों की ख़ुदाई का वक़्त है
छिन गई तेरी तमन्ना भी तमन्नाई से