धुएँ से आसमाँ का रंग मैला होता जाता है
हरे जंगल बदलते जा रहे हैं कार-ख़ानों में
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बरस कर खुल गया अब्र-ए-ख़िज़ाँ आहिस्ता आहिस्ता
संग उठाना तो बड़ी बात है अब शहर के लोग
ले के हम-राह छलकते हुए पैमाने को
बहता आँसू एक झलक में कितने रूप दिखाएगा
जहान-ए-इश्क़ से हम सरसरी नहीं गुज़रे
भूले-बिसरे मौसमों के दरमियाँ रहता हूँ मैं
इश्क़ में कौन बता सकता है
दिल में वो शोर न आँखों में वो नम रहता है
यार सब जम्अ हुए रात की ख़ामोशी में
जहाँ डाले थे उस ने धूप में कपड़े सुखाने को
उदास कर के दरीचे नए मकानों के