संग उठाना तो बड़ी बात है अब शहर के लोग
आँख उठा कर भी नहीं देखते दीवाने को
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दुख के सफ़र पे दिल को रवाना तो कर दिया
बहुत रुक रुक के चलती है हवा ख़ाली मकानों में
कभी ख़्वाहिश न हुई अंजुमन-आराई की
जिस की साँसों से महकते थे दर-ओ-बाम तिरे
हम उन को सोच में गुम देख कर वापस चले आए
मोनिस-ए-दिल कोई नग़्मा कोई तहरीर नहीं
मलाल-ए-दिल से इलाज-ए-ग़म-ए-ज़माना किया
दिल फ़सुर्दा तो हुआ देख के उस को लेकिन
ये पानी ख़ामुशी से बह रहा है
बहता आँसू एक झलक में कितने रूप दिखाएगा
हमारा क्या है जो होता है जी उदास बहुत
इश्क़ में कौन बता सकता है