गुम रहा हूँ तिरे ख़यालों में
तुझ को आवाज़ उम्र भर दी है
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चमक-दमक पे न जाओ खरी नहीं कोई शय
छत से कुछ क़हक़हे अभी तक
छिन गई तेरी तमन्ना भी तमन्नाई से
होती है शाम आँख से आँसू रवाँ हुए
धुएँ से आसमाँ का रंग मैला होता जाता है
उदास कर के दरीचे नए मकानों के
खोया है कुछ ज़रूर जो उस की तलाश में
शाम-ए-ग़म याद है कब शम्अ' जली याद नहीं
आज रो कर तो दिखाए कोई ऐसा रोना
दिल में वो शोर न आँखों में वो नम रहता है
ज़िंदगी से एक दिन मौसम ख़फ़ा हो जाएँगे
वो वक़्त भी आता है जब आँखों में हमारी