होती है शाम आँख से आँसू रवाँ हुए
ये वक़्त क़ैदियों की रिहाई का वक़्त है
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पानी में अक्स और किसी आसमाँ का है
बहुत रुक रुक के चलती है हवा ख़ाली मकानों में
जिस की साँसों से महकते थे दर-ओ-बाम तिरे
कहूँ किस से रात का माजरा नए मंज़रों पे निगाह थी
शबनम को रेत फूल को काँटा बना दिया
दुनिया में सुराग़-ए-रह-ए-दुनिया नहीं मिलता
हमारा क्या है जो होता है जी उदास बहुत
चमक-दमक पे न जाओ खरी नहीं कोई शय
इक रात चाँदनी मिरे बिस्तर पे आई थी
ये कहना तो नहीं काफ़ी कि बस प्यारे लगे हम को
नाला-ए-ख़ूनीं से रौशन दर्द की रातें करो
बहुत उदास हो तुम और मैं भी बैठा हूँ