बहुत उदास हो तुम और मैं भी बैठा हूँ
गए दिनों की कमर से कमर लगाए हुए
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इन मौसमों में नाचते गाते रहेंगे हम
दुनिया में सुराग़-ए-रह-ए-दुनिया नहीं मिलता
जब शाम उतरती है क्या दिल पे गुज़रती है
दस्त-ए-सुमूम दस्त-ए-सबा क्यूँ नहीं हुआ
हम उन को सोच में गुम देख कर वापस चले आए
आज रो कर तो दिखाए कोई ऐसा रोना
गुम रहा हूँ तिरे ख़यालों में
धड़कती रहती है दिल में तलब कोई न कोई
भूले-बिसरे मौसमों के दरमियाँ रहता हूँ मैं
रुख़्सत-ए-शब का समाँ पहले कभी देखा न था
पानी में अक्स और किसी आसमाँ का है
दिल फ़सुर्दा तो हुआ देख के उस को लेकिन