पानी में अक्स और किसी आसमाँ का है
ये नाव कौन सी है ये दरिया कहाँ का है
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ख़ून-ए-दिल से किश्त-ए-ग़म को सींचता रहता हूँ मैं
ये कौन ख़्वाब में छू कर चला गया मिरे लब
तुम आए हो तुम्हें भी आज़मा कर देख लेता हूँ
मुझे उस ने तिरी ख़बर दी है
जैसे पौ फट रही हो जंगल में
अब न बहल सकेगा दिल अब न दिए जलाइए
रात फिर रंग पे थी उस के बदन की ख़ुशबू
मंज़र-ए-सुबह दिखाने उसे लाया न गया
हम उन को सोच में गुम देख कर वापस चले आए
इश्क़ में कौन बता सकता है
मुँह अंधेरे जगा के छोड़ गई
मोनिस-ए-दिल कोई नग़्मा कोई तहरीर नहीं