नींदों में फिर रहा हूँ उसे ढूँढता हुआ
शामिल जो एक ख़्वाब मिरे रत-जगे में था
Allama Iqbal
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Gulzar
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Wasi Shah
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Jaun Eliya
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किस झुटपुटे के रंग उजालों में आ गए
रात फिर रंग पे थी उस के बदन की ख़ुशबू
बला की चमक उस के चेहरे पे थी
अब मंज़िल-ए-सदा से सफ़र कर रहे हैं हम
मिलने की ये कौन घड़ी थी
ज़मीं से उगती है या आसमाँ से आती है
बरस कर खुल गया अब्र-ए-ख़िज़ाँ आहिस्ता आहिस्ता
दुख के सफ़र पे दिल को रवाना तो कर दिया
जिस की साँसों से महकते थे दर-ओ-बाम तिरे
आज रो कर तो दिखाए कोई ऐसा रोना
जहाँ डाले थे उस ने धूप में कपड़े सुखाने को
इक उम्र की और ज़रूरत है वही शाम-ओ-सहर करने के लिए