बला की चमक उस के चेहरे पे थी
मुझे क्या ख़बर थी कि मर जाएगा
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दिल फ़सुर्दा तो हुआ देख के उस को लेकिन
बरस कर खुल गया अब्र-ए-ख़िज़ाँ आहिस्ता आहिस्ता
पानी में अक्स और किसी आसमाँ का है
मुँह अंधेरे जगा के छोड़ गई
रात फिर रंग पे थी उस के बदन की ख़ुशबू
तन्हाई में करनी तो है इक बात किसी से
मुझे उस ने तिरी ख़बर दी है
हिज्र इक वक़्फ़ा-ए-बेदार है दो नींदों में
दिलों की ओर धुआँ सा दिखाई देता है
ये पानी ख़ामुशी से बह रहा है
मैं बहुत ख़ुश था कड़ी धूप के सन्नाटे में
कैसे आ सकती है ऐसी दिल-नशीं दुनिया को मौत