मुझे उस ने तिरी ख़बर दी है
जिस ने हर शाम को सहर दी है
गुम रहा हूँ तिरे ख़यालों में
तुझ को आवाज़ उम्र भर दी है
दिन था और गर्द-ए-रहगुज़ार नसीब
रात है और सितारा-गर्दी है
सर्द-ओ-गर्म-ए-ज़माना देख लिया
न वो गर्मी है अब न सर्दी है
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Anwar Masood
Parveen Shakir
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(813) Peoples Rate This
थम गया दर्द उजाला हुआ तन्हाई में
वही उन की सतीज़ा-कारी है
चुप कहीं और लिए फिरती थी बातें कहीं और
जिस की साँसों से महकते थे दर-ओ-बाम तिरे
दस्त-ए-सुमूम दस्त-ए-सबा क्यूँ नहीं हुआ
छिन गई तेरी तमन्ना भी तमन्नाई से
रुख़्सत-ए-शब का समाँ पहले कभी देखा न था
ख़ून-ए-दिल से किश्त-ए-ग़म को सींचता रहता हूँ मैं
संग उठाना तो बड़ी बात है अब शहर के लोग
होती है शाम आँख से आँसू रवाँ हुए
दिल भर आया काग़ज़-ए-ख़ाली की सूरत देख कर
ये तन्हा रात ये गहरी फ़ज़ाएँ