इक ज़माना था कि सब एक जगह रहते थे
और अब कोई कहीं कोई कहीं रहता है
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ये तन्हा रात ये गहरी फ़ज़ाएँ
नींदों में फिर रहा हूँ उसे ढूँढता हुआ
मुसलसल याद आती है चमक चश्म-ए-ग़ज़ालाँ की
कहाँ की गूँज दिल-ए-ना-तवाँ में रहती है
एक लम्हे में बिखर जाता है ताना-बाना
दुख की चीख़ें प्यार की सरगोशियाँ रह जाएँगी
थम गया दर्द उजाला हुआ तन्हाई में
पानी में अक्स और किसी आसमाँ का है
छत से कुछ क़हक़हे अभी तक
इक रात चाँदनी मिरे बिस्तर पे आई थी
गुम रहा हूँ तिरे ख़यालों में