एक लम्हे में बिखर जाता है ताना-बाना
और फिर उम्र गुज़र जाती है यकजाई में
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चश्म ओ लब कैसे हों रुख़्सार हों कैसे तेरे
अब शुग़्ल है यही दिल-ए-ईज़ा-पसंद का
बहता आँसू एक झलक में कितने रूप दिखाएगा
लाग़र हैं जिस्म रंग हैं काले पड़े हुए
ये तन्हा रात ये गहरी फ़ज़ाएँ
तन्हाई में करनी तो है इक बात किसी से
दुख के सफ़र पे दिल को रवाना तो कर दिया
कई चाँद थे सर-ए-आसमाँ कि चमक चमक के पलट गए
मिल ही जाएगा कभी दिल को यक़ीं रहता है
दिलों की ओर धुआँ सा दिखाई देता है
जैसे पौ फट रही हो जंगल में
छत से कुछ क़हक़हे अभी तक