खोया है कुछ ज़रूर जो उस की तलाश में
हर चीज़ को इधर से उधर कर रहे हैं हम
Rahat Indori
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Jaun Eliya
Wasi Shah
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1013) Peoples Rate This
मैं बहुत ख़ुश था कड़ी धूप के सन्नाटे में
मुझे उस ने तिरी ख़बर दी है
जिस की साँसों से महकते थे दर-ओ-बाम तिरे
जब शाम उतरती है क्या दिल पे गुज़रती है
मोनिस-ए-दिल कोई नग़्मा कोई तहरीर नहीं
आज रो कर तो दिखाए कोई ऐसा रोना
जाने किस दम निकल आए तिरे रुख़्सार की धूप
तू अगर पास नहीं है कहीं मौजूद तो है
रोज़ मिलने पे भी लगता था कि जुग बीत गए
ख़ून-ए-दिल से किश्त-ए-ग़म को सींचता रहता हूँ मैं
इक रात चाँदनी मिरे बिस्तर पे आई थी
शाम-ए-ग़म याद है कब शम्अ' जली याद नहीं