अरे क्यूँ डर रहे हो जंगल से
ये कोई आदमी की बस्ती है
Parveen Shakir
Anwar Masood
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Rahat Indori
Jaun Eliya
Gulzar
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(758) Peoples Rate This
ज़िंदगी से एक दिन मौसम ख़फ़ा हो जाएँगे
तमाशा-गाह-ए-जहाँ में मजाल-ए-दीद किसे
हिज्र इक वक़्फ़ा-ए-बेदार है दो नींदों में
छिन गई तेरी तमन्ना भी तमन्नाई से
बहता आँसू एक झलक में कितने रूप दिखाएगा
धुएँ से आसमाँ का रंग मैला होता जाता है
ज़मीं से उगती है या आसमाँ से आती है
दिल भर आया काग़ज़-ए-ख़ाली की सूरत देख कर
अब शुग़्ल है यही दिल-ए-ईज़ा-पसंद का
ख़ून-ए-दिल से किश्त-ए-ग़म को सींचता रहता हूँ मैं
चुप कहीं और लिए फिरती थी बातें कहीं और
ख़्वाब के फूलों की ताबीरें कहानी हो गईं