अहल-ए-हवस तो ख़ैर हवस में हुए ज़लील
वो भी हुए ख़राब, मोहब्बत जिन्हों ने की
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Gulzar
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Wasi Shah
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मिलने की ये कौन घड़ी थी
रौशनी रहती थी दिल में ज़ख़्म जब तक ताज़ा था
पानी में अक्स और किसी आसमाँ का है
अब मंज़िल-ए-सदा से सफ़र कर रहे हैं हम
अश्क दामन में भरे ख़्वाब कमर पर रक्खा
हम उन को सोच में गुम देख कर वापस चले आए
लाग़र हैं जिस्म रंग हैं काले पड़े हुए
मोनिस-ए-दिल कोई नग़्मा कोई तहरीर नहीं
बहता आँसू एक झलक में कितने रूप दिखाएगा
चाँद भी निकला सितारे भी बराबर निकले
जहाँ डाले थे उस ने धूप में कपड़े सुखाने को
जाने किस दम निकल आए तिरे रुख़्सार की धूप