अब उस की शक्ल भी मुश्किल से याद आती है
वो जिस के नाम से होते न थे जुदा मिरे लब
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तुम आए हो तुम्हें भी आज़मा कर देख लेता हूँ
ये तन्हा रात ये गहरी फ़ज़ाएँ
तन्हाई में करनी तो है इक बात किसी से
इन मौसमों में नाचते गाते रहेंगे हम
अब वो गलियाँ वो मकाँ याद नहीं
रोज़ मिलने पे भी लगता था कि जुग बीत गए
यार सब जम्अ हुए रात की ख़ामोशी में
तिरे दीवाने हर रंग रहे तिरे ध्यान की जोत जगाए हुए
ख़ैर औरों ने भी चाहा तो है तुझ सा होना
ये कहना तो नहीं काफ़ी कि बस प्यारे लगे हम को