ज़िंदगी सुंदर ग़ज़ल है दोस्तो
ज़िंदगी को गुनगुनाना चाहिए
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आ कि चाहत वस्ल की फिर से बड़ी पुर-ज़ोर है
ज़र्फ़ है किस में कि वो सारा जहाँ ले कर चले
हो सितम कैसा भी अब हालात की शमशीर का
इक इश्क़ है कि जिस की गली जा रहा हूँ मैं
सुबू उठा मिरे साक़ी कि रात जाती है
ख़याल-ए-यार का जल्वा यहाँ भी था वहाँ भी था
मैं जी भर के रोया तो आराम आया
किधर का था किधर का हो गया हूँ
बहुत अज़ीज़ था आलम वो दिल-फ़िगारी का
ये क्या हुआ कि अब तुझी से बद-गुमाँ मैं हो गया
मोहब्बत करने वाले दर्द में तन्हा नहीं होते