बात चल निकलेगी फिर इक़रार की इंकार की
फिर वही बचपन के भूले गीत गाए जाएँगे
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ये क्या हुआ कि अब तुझी से बद-गुमाँ मैं हो गया
वफ़ा और इश्क़ के रिश्ते बड़े ख़ुश-रंग होते हैं
मोहब्बत करने वाले दर्द में तन्हा नहीं होते
ख़याल-ए-यार का जल्वा यहाँ भी था वहाँ भी था
एहसास के सूखे पत्ते भी अरमानों की चिंगारी भी
रंग आ जाता था उन की दीद से रुख़ पर मिरे
हम ने मिल-जुल के गुज़ारे थे जो दिन अच्छे थे
हम लकीरें कुरेद कर देखें
जो होगा सब ठीक ही होगा होने दो जो होना है
थी याद किस दयार की जो आ के यूँ रुला गई
हो सितम कैसा भी अब हालात की शमशीर का
बहुत अज़ीज़ था आलम वो दिल-फ़िगारी का