दास्ताँ Poetry (page 9)

तारों से माहताब से और कहकशाँ से क्या

हीरा लाल फ़लक देहलवी

'हसरत' जो सुन रहे हैं वो अहल-ए-वफ़ा का हाल

हसरत मोहानी

ग़म-ए-हयात ने फ़ुर्सत न दी सुनाने की

हसन ताहिर

चले गए हो सुकून-ओ-क़रार-ए-जाँ ले कर

हसन ताहिर

अपनी वज्ह-ए-बर्बादी जानते हैं हम लेकिन क्या करें बयाँ लोगो

हसन कमाल

रात लम्बी भी है और तारीक भी शब-गुज़ारी का सामाँ करो दोस्तो

हसन अख्तर जलील

आई पतझड़ गिरे फ़स्ल-ए-गुल के निशाँ रात-भर में

हसन अख्तर जलील

मकीं यहीं का है लेकिन मकाँ से बाहर है

हसन अब्बास रज़ा

मकीं यहीं का है लेकिन मकाँ से बाहर है

हसन अब्बास रज़ा

शैख़ ओ पंडित धर्म और इस्लाम की बातें करें

हरी चंद अख़्तर

ग़ुरूर-ज़ब्त से आह-ओ-फ़ुग़ाँ तक बात आ पहुँची

हरी चंद अख़्तर

न वो वलवले हैं दिल में न वो आलम-ए-जवानी

हंस राज सचदेव 'हज़ीं'

न जाने कब लिखा जाए

हमीदा शाहीन

शहर-ए-आरज़ू

हमीद अलमास

उस के करम से है न तुम्हारी नज़र से है

हमीद अलमास

यक़ीन कैसे करूँगा गुमाँ में रहता हूँ

हमदम कशमीरी

हुआ है सामने आँखों के ख़ानदाँ आबाद

हमदम कशमीरी

बाद-ए-सरसर है नसीम-ए-गुलिस्ताँ मेरे लिए

हकीम मोहम्मद हुसैन अहक़र

वहशी थे बू-ए-गुल की तरह इस जहाँ में हम

हैदर अली आतिश

सूरत से इस की बेहतर सूरत नहीं है कोई

हैदर अली आतिश

सुन तो सही जहाँ में है तेरा फ़साना क्या

हैदर अली आतिश

तमाम रात आँसुओं से ग़म उजालता रहा

हफ़ीज़ मेरठी

बड़े अदब से ग़ुरूर-ए-सितम-गराँ बोला

हफ़ीज़ मेरठी

क़ासिद ख़िलाफ़-ए-ख़त कहीं तेरा बयाँ न हो

हफ़ीज़ जौनपुरी

किसी के रू-ब-रू बैठा रहा मैं बे-ज़बाँ हो कर

हफ़ीज़ जालंधरी

भागते सायों के पीछे ता-ब-कै दौड़ा करें

हफ़ीज़ बनारसी

दुश्मनों ने जो दुश्मनी की है

हबीब जालिब

दयार-ए-'दाग़'-ओ-'बेख़ुद' शहर-ए-देहली छोड़ कर तुझ को

हबीब जालिब

कल का हर वाक़िआ तुम्हारा था

गुलज़ार

शाम से आज साँस भारी है

गुलज़ार

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