दास्ताँ Poetry (page 11)

इन उजड़ी बस्तियों का कोई तो निशाँ रहे

एज़ाज़ अहमद आज़र

था वो जंगल कि नगर याद नहीं

एजाज़ उबैद

यहीं था बैठा हुआ दरमियाँ कहाँ गया मैं

एजाज़ गुल

'ग़ालिब' को बुरा क्यूँ कहो

दिलावर फ़िगार

सारे नुक़ूश जिस पे तिरे आशियाँ के हैं

दिल अय्यूबी

किसी क़लम से किसी की ज़बाँ से चलता हूँ

धीरेंद्र सिंह फ़य्याज़

नहीं कहते किसी से हाल-ए-दिल ख़ामोश रहते हैं

द्वारका दास शोला

वक़्त की सदियाँ

दाऊद ग़ाज़ी

फ़िदा अल्लाह की ख़िल्क़त पे जिस का जिस्म ओ जाँ होगा

दत्तात्रिया कैफ़ी

तुझे क्या ख़बर मिरे हम-सफ़र मिरा मरहला कोई और है

दर्शन सिंह

क़ैद-ए-ग़म-ए-हयात से अहल-ए-जहाँ मफ़र नहीं

दर्शन सिंह

मुस्कुरा कर उन का मिलना और बिछड़ना रूठ कर

दानिश अलीगढ़ी

क्या ख़बर थी मुन्हरिफ़ अहल-ए-जहाँ हो जाएँगे

दानिश अलीगढ़ी

शब-ए-वस्ल की क्या कहूँ दास्ताँ

दाग़ देहलवी

पुकारती है ख़मोशी मिरी फ़ुग़ाँ की तरह

दाग़ देहलवी

लोग जिन को आज तक बार-ए-गराँ समझा किए

डी. राज कँवल

लाख कुछ न हम कहते बे-ज़बाँ रहे होते

चरण सिंह बशर

मर्सिया गोपाल कृष्ण गोखले

चकबस्त ब्रिज नारायण

मंज़रों के दरमियाँ मंज़र बनाना चाहिए

बुशरा एजाज़

पूछते हैं बज़्म में सुन कर वो अफ़्साना मिरा

ब्रहमा नन्द जलीस

न मिला तिरा पता तो मुझे लोग क्या कहेंगे

बेताब लखनवी

मिरे दर्द-ए-निहाँ का हाल मोहताज-ए-बयाँ क्यूँ हो

बेदम शाह वारसी

क़फ़स की तीलियों से ले के शाख़-ए-आशियाँ तक है

बेदम शाह वारसी

फ़स्ल-ए-बहार जाने ये क्या गुल कतर गई

बेबाक भोजपुरी

तिरी आरज़ू तिरी जुस्तुजू में भटक रहा था गली गली

बशीर बद्र

सुनाते हैं मुझे ख़्वाबों की दास्ताँ अक्सर

बशीर बद्र

नज़र से गुफ़्तुगू ख़ामोश लब तुम्हारी तरह

बशीर बद्र

मैं तुम को भूल भी सकता हूँ इस जहाँ के लिए

बशीर बद्र

कहीं चाँद राहों में खो गया कहीं चाँदनी भी भटक गई

बशीर बद्र

सर पे इक साएबाँ तो रहने दे

बशीर मुंज़िर

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