हमारी जेब में ख़्वाबों की रेज़गारी है
सो लेन-देन हमारा दुकाँ से बाहर है
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Gulzar
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1055) Peoples Rate This
सीने की ख़ानक़ाह में आने नहीं दिया
क्या शख़्स था उड़ाता रहा उम्र भर मुझे
ज़मीं सरकती है फिर साएबान टूटता है
आसार-ए-क़दीमा से निकला एक नविश्ता
न आरज़ुओं का चाँद चमका न क़ुर्बतों के गुलाब महके
इरादा था कि अब के रंग-ए-दुनिया देखना है
उस का फ़िराक़ इतना बड़ा सानेहा न था
तावान
शब की शब महफ़िल में कोई ख़ुश-कलाम आया तो क्या
किसी के हिज्र में यूँ टूट कर रोया नहीं करते
कल शब क़सम ख़ुदा की बहुत डर लगा हमें
गुलाब-ए-सुर्ख़ से आरास्ता दालान करना है