क्या शख़्स था उड़ाता रहा उम्र भर मुझे
लेकिन हवा से हाथ मिलाने नहीं दिया
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धड़कती क़ुर्बतों के ख़्वाब से जागे तो जाना
जुदाई की रुतों में सूरतें धुँदलाने लगती हैं
तअल्लुक़ तोड़ने में पहल मुश्किल मरहला था
आँखों से ख़्वाब दिल से तमन्ना तमाम-शुद
सफ़र दीवार-ए-गिर्या का
मैं फिर इक ख़त तिरे आँगन गिराना चाहता हूँ
किसी की याद में आँखों को लाल क्या करना
उस का फ़िराक़ इतना बड़ा सानेहा न था
हर एक चेहरे पे कंदा हिकायतें देखो
छाजों बरसती बारिश के बाद
हमारी जेब में ख़्वाबों की रेज़गारी है