ये कार-ए-इश्क़ तो बच्चों का खेल ठहरा है
सो कार-ए-इश्क़ में कोई कमाल क्या करना
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रिया-कारियों से मुसल्लह ये लश्कर मुझे मार देंगे
न आरज़ुओं का चाँद चमका न क़ुर्बतों के गुलाब महके
आँखों से ख़्वाब दिल से तमन्ना तमाम-शुद
शब की शब महफ़िल में कोई ख़ुश-कलाम आया तो क्या
किस को थी ख़बर इस में तड़ख़ जाएगा दिल भी
मकीं यहीं का है लेकिन मकाँ से बाहर है
दुश्मन को ज़द पर आ जाने दो दशना मिल जाएगा
विसाल-घड़ियों में रेज़ा रेज़ा बिखर रहे हैं
हर एक चेहरे पे कंदा हिकायतें देखो
धड़कती क़ुर्बतों के ख़्वाब से जागे तो जाना
हमारी जेब में ख़्वाबों की रेज़गारी है