बाहर Poetry (page 14)

सुब्ह-दम रोती जो तेरी बज़्म से जाती है शम्अ

इम्दाद इमाम असर

शैख़ के हाल पर तअस्सुफ़ है

इम्दाद इमाम असर

ये दिल है तो आफ़त में पड़ते रहेंगे

इमदाद अली बहर

मर गए पर भी न हो बोझ किसी पर अपना

इमदाद अली बहर

आतिश-ए-बाग़ ऐसे भड़की है कि जलती है हवा

इमदाद अली बहर

दिल सियह है बाल हैं सब अपने पीरी में सफ़ेद

इमाम बख़्श नासिख़

शाही बदला

इलियास बाबर आवान

ग़ैर-निसाबी तारीख़

इलियास बाबर आवान

अपना अपना दुख बतलाना होता है

इलियास बाबर आवान

दीवार ओ दर झुलसते रहे तेज़ धूप में

इफ़्तिख़ार नसीम

सूरज नए बरस का मुझे जैसे डस गया

इफ़्तिख़ार नसीम

शाम से तन्हा खड़ा हूँ यास का पैकर हूँ मैं

इफ़्तिख़ार नसीम

रात को बाहर अकेले घूमना अच्छा नहीं

इफ़्तिख़ार नसीम

अपना सारा बोझ ज़मीं पर फेंक दिया

इफ़्तिख़ार नसीम

साएबान

इफ़्तेख़ार जालिब

हर मुश्किल आसान बनाने वाला था

इफ़्तिख़ार फलक काज़मी

आसाँ नहीं है जादा-ए-हैरत उबूरना

इफ़्तिख़ार फलक काज़मी

रूह जिस्मों से बाहर भटकती रही

इफ़्फ़त ज़र्रीं

करते फिरते हैं ग़ज़ालाँ तिरा चर्चा साहब

इदरीस बाबर

इस से फूलों वाले भी आजिज़ आ गए हैं

इदरीस बाबर

मकड़ी

इब्न-ए-मुफ़्ती

जल्वा-नुमाई बेपरवाई हाँ यही रीत जहाँ की है

इब्न-ए-इंशा

झुलसी सी इक बस्ती में

इब्न-ए-इंशा

जल्वा-नुमाई बे-परवाई हाँ यही रीत जहाँ की है

इब्न-ए-इंशा

जैसे कोई ज़िद्दी बच्चा कब बहले बहलाने से

हुमैरा रहमान

आँखों से किसी ख़्वाब को बाहर नहीं देखा

हुमैरा राहत

ज़िंदगी से मिली सौग़ात ये तन्हाई की

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

का'बा-ओ-बुत-ख़ाना वालों से जुदा बैठे हैं हम

हातिम अली मेहर

सिर्फ़ ख़यालों में न रहा कर

हस्तीमल हस्ती

राह-रस्ते में तू यूँ रहता है आ कर हम से मिल

हसरत अज़ीमाबादी

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