दर-ओ-दीवार भी घर के बहुत मायूस थे हम से
सो हम भी रात इस जागीर से बाहर निकल आए
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ख़ुद को इतना जो हवा-दार समझ रक्खा है
नज़र न आए हम अहल-ए-नज़र के होते हुए
अमीर-ए-शहर से मिल कर सज़ाएँ मिलती हैं
अब उसे छोड़ के जाना भी नहीं चाहते हम
यहाँ मज़बूत से मज़बूत लोहा टूट जाता है
ये इंतिक़ाम है या एहतिजाज है क्या है
बड़े हिसाब से इज़्ज़त बचानी पड़ती है
शौक़ से आप ये अंग्रेज़ी दवा भी लेते
दर्द आसानी से कब पहलू बदल कर निकला
हमारे दोस्तों में कोई दुश्मन हो भी सकता है
खुला ये राज़ कि ये ज़िंदगी भी होती है