नाहीद ओ क़मर ने रातों के अहवाल को रौशन कर तो दिया
वो दीप किसी से जल न सके जो दिल में उजाला करते हैं
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आ दोस्त साथ आ दर-ए-माज़ी से माँग लाएँ
बहार हो कि मौज-ए-मय कि तब्अ की रवानियाँ
यक़ीनन रहबर-ए-मंज़िल कहीं पर रास्ता भूला
छुपे तो कैसे छुपे चमन में मिरा तिरा रब्त-ए-वालिहाना
दिल में क्या क्या गुमाँ गुज़रते हैं
शौक़ कितने फ़रेब देता है
मौसम-ए-गुल है बादल छाए खनक रहे हैं पैमाने
ऐ अक़्ल साथ रह कि पड़ेगा तुझी से काम
मौज-ए-तख़य्युल गुल का तबस्सुम परतव-ए-शबनम बिजली का साया
क़फ़स भी है यहाँ सय्याद भी गुलचीं भी काँटे भी
ये भी हुआ कि दर न तिरा कर सके तलाश
कुछ हुस्न के फ़साने तरतीब दे रहा हूँ