गुल Poetry (page 93)

क़तरा वही कि रू-कश-ए-दरिया कहें जिसे

आसी ग़ाज़ीपुरी

घर की हद में सहरा है

आशुफ़्ता चंगेज़ी

अरक़ जब उस परी के चेहरा-ए-पुर-नूर से टपके

आरिफ़ुद्दीन आजिज़

मायूस ख़ुद-ब-ख़ुद दिल-ए-उम्मीद-वार है

आले रज़ा रज़ा

टीपू की आवाज़

आल-ए-अहमद सूरूर

ज़ंजीर से जुनूँ की ख़लिश कम न हो सकी

आल-ए-अहमद सूरूर

ये दौर मुझ से ख़िरद का वक़ार माँगे है

आल-ए-अहमद सूरूर

तू पयम्बर सही ये मो'जिज़ा काफ़ी तो नहीं

आल-ए-अहमद सूरूर

ख़ुदा-परस्त मिले और न बुत-परस्त मिले

आल-ए-अहमद सूरूर

हमें तो मय-कदे का ये निज़ाम अच्छा नहीं लगता

आल-ए-अहमद सूरूर

हमारे हाथ में जब कोई जाम आया है

आल-ए-अहमद सूरूर

सिक्का-ए-दाग़-ए-जुनूँ मिलते जो दौलत माँगता

आग़ा अकबराबादी

सर्व-क़द लाला-रुख़ ओ ग़ुंचा-दहन याद आया

आग़ा अकबराबादी

नुमूद-ए-क़ुदरत-ए-पर्वरदिगार हम भी हैं

आग़ा अकबराबादी

निगाहों में इक़रार सारे हुए हैं

आग़ा अकबराबादी

मज़ा है इम्तिहाँ का आज़मा ले जिस का जी चाहे

आग़ा अकबराबादी

हमारे सामने कुछ ज़िक्र ग़ैरों का अगर होगा

आग़ा अकबराबादी

चाहत ग़म्ज़े जता रही है

आग़ा अकबराबादी

बुत-ए-ग़ुंचा-दहन पे निसार हूँ मैं नहीं झूट कुछ इस में ख़ुदा की क़सम

आग़ा अकबराबादी

तिरे लबों को मिली है शगुफ़्तगी गुल की

आग़ा निसार

यही नहीं कि फ़क़त प्यार करने आए हैं

आग़ा निसार

अदा से देख लो जाता रहे गिला दिल का

आफ़ताबुद्दौला लखनवी क़लक़

क्या ज़मीं क्या आसमाँ कुछ भी नहीं

आफ़ाक़ सिद्दीक़ी

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