गुल Poetry (page 3)
रुक जा हुजूम-ए-गुल कि अभी हौसला नहीं
ज़ेहरा निगाह
समझौता
ज़ेहरा निगाह
क़िस्सा गुल-बादशाह का
ज़ेहरा निगाह
तिरा ख़याल फ़रोज़ाँ है देखिए क्या हो
ज़ेहरा निगाह
सफ़र ख़ुद-रफ़्तगी का भी अजब अंदाज़ था
ज़ेहरा निगाह
रुक जा हुजूम-ए-गुल कि अभी हौसला नहीं
ज़ेहरा निगाह
रात अजब आसेब-ज़दा सा मौसम था
ज़ेहरा निगाह
जुज़्व
ज़ेहरा अलवी
मिरे दिल के टूटे सितारे को तुम ने
ज़ीशान साहिल
न होगा हश्र महशर में बपा क्या
ज़ेबा
फ़ैसला क्या हो जान-ए-बिस्मिल का
ज़ेबा
सेहन-ए-चमन में जाना मेरा और फ़ज़ा में बिखर जाना
ज़ेब ग़ौरी
मैं अक्स-ए-आरज़ू था हवा ले गई मुझे
ज़ेब ग़ौरी
झुके हुए पेड़ों के तनों पर छाप है चंचल धारे की
ज़ेब ग़ौरी
है सदफ़ गौहर से ख़ाली रौशनी क्यूँकर मिले
ज़ेब ग़ौरी
गो मिरी हर साँस इक पेगाज़-ए-सरमस्ती रही
ज़ेब ग़ौरी
बस एक पर्दा-ए-इग़माज़ था कफ़न उस का
ज़ेब ग़ौरी
मैकनिक शाएर
ज़रीफ़ जबलपूरी
मेरे ख़ुर्शीद ओ क़मर आए नहीं
ज़मीर अज़हर
राहतों के धोके में इज़्तिराब ढूँडे हैं
ज़मीर अतरौलवी
उस ने निगाह-ए-लुत्फ़-ओ-करम बार बार की
ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर
लबों की जुम्बिश नवा-ए-बुलबुल है शोख़ लहजा तिरा क़यामत
ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर
क्या बताएँ ग़म-ए-फ़ुर्क़त में कहाँ से गुज़रे
ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर
दर्द शायान-ए-शान-ए-दिल भी नहीं
ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर
महकी शब आईना देखे अपने बिस्तर से बाहर
ज़काउद्दीन शायाँ
हरे मौसम खिलेंगे सोना बन के ख़ाक बदलेगी
ज़काउद्दीन शायाँ
हर घड़ी चलती है तलवार तिरे कूचे में
ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़
ख़ाक पर ही मिरे आँसू हैं न दामन में कहीं
ज़ेब उस्मानिया
मशरब-ए-हुस्न के उन्वान बदल जाते हैं
ज़ेब बरैलवी
किसी की याद-ए-रंगीं में है ये दिल बे-क़रार अब तक
ज़हीर अहमद ताज
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