गुल Poetry (page 4)

गेसू-ए-शेर-ओ-अदब के पेच सुलझाता हूँ मैं

ज़हीर अहमद ताज

मौत

ज़ाहिदा ज़ैदी

बू-ए-गुल रक़्स में है बाद-ए-ख़िज़ाँ रक़्स में है

ज़ाहिदा ज़ैदी

नश्र मुकर्रर

ज़ाहिद मसूद

ज़ुल्फ़-ए-ख़मदार में नूर-ए-रुख़-ए-ज़ेबा देखो

ज़ाहिद चौधरी

वो बहर-ओ-बर में नहीं और न आसमाँ में है

ज़ाहिद चौधरी

वो आफ़्ताब में है और न माहताब में है

ज़ाहिद चौधरी

जब आशिक़ी में मेरा कोई राज़-दाँ नहीं

ज़ाहिद चौधरी

चमन में सैर-ए-गुल को जब कभी वो मह-जबीं निकले

ज़ाहिद चौधरी

चला हूँ घर से मैं अहवाल-ए-दिल सुनाने को

ज़ाहिद चौधरी

चल दिया वो उस तरह मुझ को परेशाँ छोड़ कर

ज़ाहिद चौधरी

ज़ख़्म-ए-ताज़ा बर्ग-ए-गुल में मुंतक़िल होते गए

ज़हीर सिद्दीक़ी

हर गुल-ए-ताज़ा हमारे हाथ पर बैअत करे

ज़हीर सिद्दीक़ी

ये कारोबार-ए-चमन इस ने जब सँभाला है

ज़हीर काश्मीरी

तिरी चश्म-ए-तरब को देखना पड़ता है पुर-नम भी

ज़हीर काश्मीरी

तलब आसूदगी की अर्सा-ए-दुनिया में रखते हैं

ज़हीर काश्मीरी

किस को मिली तस्कीन-ए-साहिल किस ने सर मंजधार किया

ज़हीर काश्मीरी

इश्क़ जब तक न आस-पास रहा

ज़हीर काश्मीरी

इस दौर-ए-आफ़ियत में ये क्या हो गया हमें

ज़हीर काश्मीरी

हैं बज़्म-ए-गुल में बपा नौहा-ख़्वानियाँ क्या क्या

ज़हीर काश्मीरी

हर ग़ज़ल हर शेर अपना इस्तिआरा-आश्ना

ज़हीर ग़ाज़ीपुरी

जमाल पा के तब-ओ-ताब-ए-ग़म यगाना हुआ है

ज़हीर फ़तेहपूरी

वो किस प्यार से कोसने दे रहे हैं

ज़हीर देहलवी

कुफ़्र में भी हम रहे क़िस्मत से ईमाँ की तरफ़

ज़हीर देहलवी

गुल-अफ़्शानी के दम भरती है चश्म-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ क्या क्या

ज़हीर देहलवी

अभी से आ गईं नाम-ए-ख़ुदा हैं शोख़ियाँ क्या-क्या

ज़हीर देहलवी

बे-क़नाअत क़ाफ़िले हिर्स-ओ-हवा ओढ़े हुए

ज़फ़र मुरादाबादी

मुझे लगते हैं प्यारे तितलियाँ जुगनू परिंदे

ज़फ़र ख़ान नियाज़ी

हो चुकी हिजरत तो फिर क्या फ़र्ज़ है घर देखना

ज़फ़र कलीम

आँख के एक इशारे से किया गुल उस ने

ज़फ़र इक़बाल

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