गुल Poetry (page 6)

सरीर-ए-सल्तनत से आस्तान-ए-यार बेहतर था

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

पड़ गई दिल में तिरे तशरीफ़ फ़रमाने में धूम

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

कार-ए-दीं उस बुत के हाथों हाए अबतर हो गया

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

बहार आई है क्या क्या चाक जैब-ए-पैरहन करते

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

सलामत रहें दिल में घर करने वाले

यगाना चंगेज़ी

ख़ुदा की मार वो अय्याम-ए-शोर-ओ-शर गुज़रे

यगाना चंगेज़ी

काम दीवानों को शहरों से न बाज़ारों से

यगाना चंगेज़ी

दिल लगाने की जगह आलम-ए-ईजाद नहीं

यगाना चंगेज़ी

फ़स्ल-ए-गुल ही ज़ाहिदों को ग़म ही मय-कश शाद हैं

वज़ीर अली सबा लखनवी

बोसा-ए-सब्ज़ा-ए-ख़त दे के गुनहगार किया

वज़ीर अली सबा लखनवी

उन की रफ़्तार से दिल का अजब अहवाल हुआ

वज़ीर अली सबा लखनवी

तुम हर इक रंग में ऐ यार नज़र आते हो

वज़ीर अली सबा लखनवी

रंग है ऐ साक़ी-ए-सरशार क़ैसर-बाग़ में

वज़ीर अली सबा लखनवी

नफ़्स नमरूद है क्या होना है

वज़ीर अली सबा लखनवी

महशर का हमें क्या ग़म इस्याँ किसे कहते हैं

वज़ीर अली सबा लखनवी

जो अदू-ए-बाग़ हो बरबाद हो

वज़ीर अली सबा लखनवी

फ़िक्र-ए-रंज-ओ-राहत कैसी

वज़ीर अली सबा लखनवी

दिल-ए-पुर दाग़ बाग़ किस का है

वज़ीर अली सबा लखनवी

दिल है ग़िज़ा-ए-रंज जिगर है ग़िज़ा-ए-रंज

वज़ीर अली सबा लखनवी

देख कर ख़ुश-रंग उस गुल-पैरहन के हाथ पाँव

वज़ीर अली सबा लखनवी

बुत-परस्ती से न तीनत मिरी ज़िन्हार फिरी

वज़ीर अली सबा लखनवी

बे-ताबी-ए-दिल ने ज़ार-पा कर

वज़ीर अली सबा लखनवी

बच कर कहाँ मैं उन की नज़र से निकल गया

वज़ीर अली सबा लखनवी

ऐ सनम सब हैं तिरे हाथों से नालाँ आज-कल

वज़ीर अली सबा लखनवी

ऐ सबा जज़्ब पे जिस दम दिल-ए-नाशाद आया

वज़ीर अली सबा लखनवी

अदू-ए-जाँ बुत-ए-बे-बाक निकला

वज़ीर अली सबा लखनवी

आया जो मौसम-ए-गुल तो ये हिसाब होगा

वज़ीर अली सबा लखनवी

आप अपनी बेवफ़ाई देखिए

वज़ीर अली सबा लखनवी

आई ऐ गुल-एज़ार क्या कहना

वज़ीर अली सबा लखनवी

वो परिंदा है कहाँ शब को चहकने वाला

वज़ीर आग़ा

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