गुल Poetry (page 5)

ये बात अलग है मिरा क़ातिल भी वही था

ज़फ़र इक़बाल

शब भर रवाँ रही गुल-ए-महताब की महक

ज़फ़र इक़बाल

हम ने आवाज़ न दी बर्ग ओ नवा होते हुए

ज़फ़र इक़बाल

चमकती वुसअतों में जो गुल-ए-सहरा खिला है

ज़फ़र इक़बाल

बीनाई से बाहर कभी अंदर मुझे देखे

ज़फ़र इक़बाल

तिरा यक़ीन हूँ मैं कब से इस गुमान में था

ज़फ़र गौरी

फ़स्ल-ए-गुल को ज़िद है ज़ख़्म दिल का हरा कैसे हो

ज़फ़र गौरी

बात जब है कि हर इक फूल को यकसाँ समझो

ज़फ़र अनवर

सर में सौदा भी वही कूचा-ए-क़ातिल भी वही

ज़फ़र अनवर

ये दश्त-ए-शौक़ का लम्बा सफ़र अच्छा नहीं लगता

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

मोहब्बत पे शायद ज़वाल आ रहा है

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

सुख़नवरान-ए-अहद से ख़िताब

ज़फ़र अली ख़ाँ

ये अहद क्या है कि सब पर गिराँ गुज़रता है

ज़फ़र अज्मी

तुम्हारी जुस्तुजू की है वहाँ तक

यूनुस ग़ाज़ी

पास होते हुए जुदा क्यूँ है

यूनुस ग़ाज़ी

कहिए किन लफ़्ज़ों में अश्कों की कहानी लिक्खूँ

यूनुस ग़ाज़ी

जादा-ए-ज़ीस्त पे बरपा है तमाशा कैसा

यज़दानी जालंधरी

दौलत-ए-दर्द समेटो कि बिखरने को है

यासमीन हमीद

अजब भूल ओ हैरत जो मख़्लूक़ को है

यासीन अली ख़ाँ मरकज़

आशिक़ी के आश्कारे हो चुके

यासीन अली ख़ाँ मरकज़

यूँ बाग़ कोई हम ने उजड़ता नहीं देखा

यशपाल गुप्ता

ज़ख़्म मेरे दिल पे इक ऐसा लगा

यासीन अफ़ज़ाल

हम अपनी पुश्त पर खुली बहार ले के चल दिए

याक़ूब यावर

मज़ाक़-ए-काविश-ए-पिन्हाँ अब इतना आम क्या होगा

याक़ूब उस्मानी

मैं चाहूँ भी तो ज़ब्त-ए-गुफ़्तुगू मैं ला नहीं सकता

याक़ूब उस्मानी

हवा-ए-सुब्ह-ए-नुमू दुश्मन-ए-चमन कैसे

याक़ूब राही

आतिश-ए-ग़म में भभूका दीदा-ए-नमनाक था

याक़ूब आमिर

क्या बदन होगा कि जिस के खोलते जामे का बंद

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

ये वो आँसू हैं जिन से ज़ोहरा आतिशनाक हो जावे

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

यार कब दिल की जराहत पे नज़र करता है

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

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