गुल Poetry (page 45)

तार-ए-शबनम की तरह सूरत-ए-ख़स टूटती है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

सितारा-वार जले फिर बुझा दिए गए हम

इफ़्तिख़ार आरिफ़

शहर-ए-गुल के ख़स-ओ-ख़ाशाक से ख़ौफ़ आता है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

सब चेहरों पर एक ही रंग और सब आँखों में एक ही ख़्वाब

इफ़्तिख़ार आरिफ़

रविश में गर्दिश-ए-सय्यारगाँ से अच्छी है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

कोई मुज़्दा न बशारत न दुआ चाहती है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

बस्ती भी समुंदर भी बयाबाँ भी मिरा है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

तसव्वुर

इफ़्तिख़ार आज़मी

रहमतों में तिरी आग़ोश की पाले गए हम

इफ़्फ़त अब्बास

वो गुल वो ख़्वाब-शार भी नहीं रहा

इदरीस बाबर

रब्त असीरों को अभी उस गुल-ए-तर से कम है

इदरीस बाबर

दिल में है इत्तिफ़ाक़ से दश्त भी घर के साथ साथ

इदरीस बाबर

अपने एहसानों का नीला साएबाँ रहने दिया

इबरत मछलीशहरी

उस की इक दुनिया हूँ मैं और मेरी इक दुनिया है वो

इब्राहीम अश्क

छलकती आए कि अपनी तलब से भी कम आए

इब्न-ए-सफ़ी

ऐ मिरे सोच-नगर की रानी

इब्न-ए-इंशा

उस शाम वो रुख़्सत का समाँ याद रहेगा

इब्न-ए-इंशा

इस शहर के लोगों पे ख़त्म सही ख़ु-तलअ'ती-ओ-गुल-पैरहनी

इब्न-ए-इंशा

हमें तुम पे गुमान-ए-वहशत था हम लोगों को रुस्वा किया तुम ने

इब्न-ए-इंशा

दिल सी चीज़ के गाहक होंगे दो या एक हज़ार के बीच

इब्न-ए-इंशा

रौशनी में खोई गई रौशनी

हुसैन आबिद

राहत ओ रंज से जुदा हो कर

हुसैन आबिद

सूरत-ए-सब्ज़ा-ए-बे-गाना चमन से गुज़रे

हुरमतुल इकराम

जैसे जैसे दर्द का पिंदार बढ़ता जाए है

हुरमतुल इकराम

दिल को ग़म रास है यूँ गुल को सबा हो जैसे

होश तिर्मिज़ी

अब तो दीवानों से यूँ बच के गुज़र जाती है

होश तिर्मिज़ी

पास-ए-नामूस-ए-तमन्ना हर इक आज़ार में था

होश तिर्मिज़ी

लाएगा रंग ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ देखते रहो

होश तिर्मिज़ी

कभी आहें कभी नाले कभी आँसू निकले

होश तिर्मिज़ी

गो दाग़ हो गए हैं वो छाले पड़े हुए

होश तिर्मिज़ी

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