अब तो दीवानों से यूँ बच के गुज़र जाती है
बू-ए-गुल भी तिरे दामन की हवा हो जैसे
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गो दाग़ हो गए हैं वो छाले पड़े हुए
दिल को ग़म रास है यूँ गुल को सबा हो जैसे
यादें चलें ख़याल चला अश्क-ए-तर चले
देखे हैं जो ग़म दिल से भुलाए नहीं जाते
तज़ईन-ए-बज़्म-ए-ग़म के लिए कोई शय तो हो
मिलने को है खमोशी-ए-अहल-ए-जुनूँ की दाद
लाएगा रंग ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ देखते रहो
कभी आहें कभी नाले कभी आँसू निकले
दश्त-ए-वफ़ा में जल के न रह जाएँ अपने दिल
पास-ए-नामूस-ए-तमन्ना हर इक आज़ार में था