गुल Poetry (page 43)

उस का बदन भी चाहिए और दिल भी चाहिए

इमरान-उल-हक़ चौहान

मौसम-ए-गुल है तिरे सुर्ख़ दहन की हद तक

इमरान-उल-हक़ चौहान

कोई तो है जो आहों में असर आने नहीं देता

इमरान-उल-हक़ चौहान

अपने लहू में ज़हर भी ख़ुद घोलता हूँ मैं

इमरान-उल-हक़ चौहान

एक तितली उड़ी

इमरान शमशाद

ख़ुदा तू इतनी भी महरूमियाँ न तारी रख

इमरान हुसैन आज़ाद

कोई मेरा इमाम था ही नहीं

इमरान आमी

काँटों में ही कुछ ज़र्फ़-ए-समाअत नज़र आए

इमदाद निज़ामी

सूली चढ़े जो यार के क़द पर फ़िदा न हो

इम्दाद इमाम असर

सुब्ह-दम रोती जो तेरी बज़्म से जाती है शम्अ

इम्दाद इमाम असर

क़ैद-ए-तन से रूह है नाशाद क्या

इम्दाद इमाम असर

कब ग़ैर हुआ महव तिरी जल्वागरी का

इम्दाद इमाम असर

हुस्न की जिंस ख़रीदार लिए फिरती है

इम्दाद इमाम असर

अपने दर से जो उठाते हैं हमें

इम्दाद इमाम असर

वस्ल में ज़िक्र ग़ैर का न करो

इमदाद अली बहर

वफ़ा में बराबर जिसे तोल लेंगे

इमदाद अली बहर

वफ़ा में बराबर जिसे तोल लेंगे

इमदाद अली बहर

तारे गिनते रात कटती ही नहीं आती है नींद

इमदाद अली बहर

सर्व में रंग है कुछ कुछ तिरी ज़ेबाई का

इमदाद अली बहर

फल आते हैं फूल टूटते हैं

इमदाद अली बहर

न कह हक़ में बुज़ुर्गों की कड़ी बात

इमदाद अली बहर

मैं उस बुत का वस्ल ऐ ख़ुदा चाहता हूँ

इमदाद अली बहर

महबूब-ए-ख़ुदा ने तुझे नायाब बनाया

इमदाद अली बहर

कभी तो देखे हमारी अरक़-फ़िशानी धूप

इमदाद अली बहर

जिस को चाहो तुम उस को भर दो

इमदाद अली बहर

जज़्ब-ए-उल्फ़त ने दिखाया असर अपना उल्टा

इमदाद अली बहर

जाते है ख़ानक़ाह से वाइज़ सलाम है

इमदाद अली बहर

जब कि सर पर वबाल आता है

इमदाद अली बहर

जब दस्त-बस्ता की नहीं उक़्दा-कुशा नमाज़

इमदाद अली बहर

इफ़्शा हुए असरार-ए-जुनूँ जामा-दरी से

इमदाद अली बहर

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