गुल Poetry (page 41)

जू-ए-ताज़ा किसी कोहसार-कुहन से आए

रईस फ़रोग़

ज़मीं पर रौशनी ही रौशनी है

रईस अमरोहवी

ये कर्बला है नज़्र-ए-बला हम हुए कि तुम

रईस अमरोहवी

सियाह है दिल-ए-गीती सियाह-तर हो जाए

रईस अमरोहवी

सियाह है दिल-ए-गीती सियाह-तर हो जाए

रईस अमरोहवी

शिकवा करने से कोई शख़्स ख़फ़ा होता है

रईस अमरोहवी

'रईस' अश्कों से दामन को भिगो लेते तो अच्छा था

रईस अमरोहवी

'रईस' अश्कों से दामन को भिगो लेते तो अच्छा था

रईस अमरोहवी

राज़-ए-गिरफ़्तगी न असीर-ए-लहन से पूछ

रईस अमरोहवी

जहाँ माबूद ठहराया गया हूँ

रईस अमरोहवी

हब्स के आलम में महबस की फ़ज़ा भी कम नहीं

रईस अमरोहवी

दीदनी है बहार का मंज़र

रईस अमरोहवी

दयार-ए-शाहिद-ए-बिल्क़ीस-अदा से आया हूँ

रईस अमरोहवी

अपने को तलाश कर रहा हूँ

रईस अमरोहवी

वस्ल की रुत हो कि फ़ुर्क़त की फ़ज़ा मुझ से है

राहुल झा

ये अमल मौजा-ए-अन्फ़ास का धोका ही न हो

रहमान हफ़ीज़

साथ ले कर अपनी बर्बादी के अफ़्साने गए

राही शहाबी

उम्मीद

राही मासूम रज़ा

तन्हाई

राही मासूम रज़ा

जिन से हम छूट गए अब वो जहाँ कैसे हैं

राही मासूम रज़ा

इस सफ़र में नींद ऐसी खो गई

राही मासूम रज़ा

ये कैसा गुल खिलाया है शजर ने

राही फ़िदाई

किसी को साया किसी को गुल-ओ-समर देगा

राही फ़िदाई

सुनो तो आरिज़ा-ए-इख़तिलाज रहने दो

राही फ़िदाई

मता-ओ-माल-ए-हवस हुब्ब-ए-आल सामने है

राही फ़िदाई

ब-ज़ोम-ए-अक़्ल ये कैसा गुनाह मैं ने किया

इरफ़ान सत्तार

अब तिरे लम्स को याद करने का इक सिलसिला और दीवाना-पन रह गया

इरफ़ान सत्तार

अब आ भी जाओ, बहुत दिन हुए मिले हुए भी

इरफ़ान सत्तार

पाबंद-ए-ग़म-ए-उल्फ़त ही रहे गो दर्द-ए-दहिंदाँ और सही

इरफ़ान अहमद मीर

मौसमों की बातों तक गुफ़्तुगू रही अपनी

इक़बाल उमर

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