इस सफ़र में नींद ऐसी खो गई
हम न सोए रात थक कर सो गई
दामन-ए-मौज-ए-सबा ख़ाली हुआ
बू-ए-गुल दश्त-ए-वफ़ा में खो गई
हाए इस परछाइयों के शहर में
दिल सी इक ज़िंदा हक़ीक़त खो गई
हम ने जब हँस कर कहा मम्नून हैं
ज़िंदगी जैसे पशेमाँ हो गई
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Wasi Shah
Parveen Shakir
Gulzar
Jaun Eliya
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Anwar Masood
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(749) Peoples Rate This
जिन से हम छूट गए अब वो जहाँ कैसे हैं
तश्बीब
रास्ते अपनी नज़र बदला किए
एक नज़्म सुब्ह के इंतिज़ार में
दर्द तन्हाई का
लोग यक-रंगी-ए-वहशत से भी उकताए हैं
मैं इक फेरी वाला
चाँद और चकोर
एक मंज़र
रंग हवा से छूट रहा है मौसम-ए-कैफ़-ओ-मस्ती है
दिल की खेती सूख रही है कैसी ये बरसात हुई