गुल Poetry (page 42)

हुस्न-ए-फ़ितरत की आबरू मुझ से

इक़बाल सुहैल

ज़िंदाँ-नसीब हूँ मिरे क़ाबू में सर नहीं

इक़बाल सुहैल

सदा फ़रियाद की आए कहीं से

इक़बाल सुहैल

हुस्न-ए-फ़ितरत की आबरू मुझ से

इक़बाल सुहैल

असीरों में भी हो जाएँ जो कुछ आशुफ़्ता-सर पैदा

इक़बाल सुहैल

मैं ख़ून बहा कर भी हुआ बाग़ में रुस्वा

इक़बाल साजिद

सूरज हूँ चमकने का भी हक़ चाहिए मुझ को

इक़बाल साजिद

ख़त्म रातों-रात उस गुल की कहानी हो गई

इक़बाल साजिद

कल शब दिल-ए-आवारा को सीने से निकाला

इक़बाल साजिद

सरसर चली वो गर्म कि साए भी जल गए

इक़बाल मिनहास

ज़ीस्त तकरार-ए-नफ़स हो जैसे

इक़बाल माहिर

नज़र नज़र में तमन्ना क़दम क़दम पे गुरेज़

इक़बाल माहिर

गुल की ख़ुश्बू की तरह आँख के आँसू की तरह

इक़बाल माहिर

अज्नबिय्यत का हर इक रुख़ पे निशाँ है यारो

इक़बाल माहिर

करें हिजरत तो ख़ाक-ए-शहर भी जुज़-दान में रख लें

इक़बाल कौसर

मिरी नज़र से जो नज़रें बचाए बैठे हैं

इक़बाल हुसैन रिज़वी इक़बाल

मर्ग-ए-गुल से पेशतर

इक़बाल हैदर

हम बहुत दूर निकल आए हैं चलते चलते

इक़बाल अज़ीम

बैठ जाता था मैं थक कर अपने तन की छाँव में

इंतिख़ाब अालम

सुब्ह-दम मुझ से लिपट कर वो नशे में बोले

इंशा अल्लाह ख़ान

नज़ाकत उस गुल-ए-राना की देखियो 'इंशा'

इंशा अल्लाह ख़ान

ग़ुंचा-ए-गुल के सबा गोद भरी जाती है

इंशा अल्लाह ख़ान

वो परी ही नहीं कुछ हो के कड़ी मुझ से लड़ी

इंशा अल्लाह ख़ान

मियाँ चश्म-ए-जादू पे इतना घमंड

इंशा अल्लाह ख़ान

मिल मुझ से ऐ परी तुझे क़ुरआन की क़सम

इंशा अल्लाह ख़ान

लो फ़क़ीरों की दुआ हर तरह आबाद रहो

इंशा अल्लाह ख़ान

है तिरा गाल माल बोसे का

इंशा अल्लाह ख़ान

काश वो पहली मोहब्बत के ज़माने आते

इन्दिरा वर्मा

प्रोफ़ेसर ही जब आते हों हफ़्ता-वार कॉलेज में

इनाम-उल-हक़ जावेद

फिर आस-पास से दिल हो चला है मेरा उदास

इम्तियाज़ अली अर्शी

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