हम पे दुनिया हुई सवार 'ज़फ़र'
और हम हैं सवार दुनिया पर
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कुछ नहीं समझा हूँ इतना मुख़्तसर पैग़ाम था
मैं अंदर से कहीं तब्दील होना चाहता था
एक ही बार नहीं है वो दोबारा कम है
वो बहुत चालाक है लेकिन अगर हिम्मत करें
छुपा हुआ जो नुमूदार से निकल आया
किस नए ख़्वाब में रहता हूँ डुबोया हुआ मैं
इसे मंज़ूर नहीं छोड़ झगड़ता क्या है
बस एक बार किसी ने गले लगाया था
हर बार मदद के लिए औरों को पुकारा
तुम अपनी मस्ती में आन टकराए मुझ से यक-दम
परियों ऐसा रूप है जिस का लड़कों ऐसा नाँव
यूँ तो है ज़ेर-ए-नज़र हर माजरा देखा हुआ