हुस्न उस का उसी मक़ाम पे है
ये मुसाफ़िर सफ़र नहीं करता
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ये बात अलग है मिरा क़ातिल भी वही था
अजब कोई ज़ोर-ए-बयाँ हो गया हूँ
इल्ज़ाम एक ये भी उठा लेना चाहिए
एक ना-मौजूदगी रह जाएगी चारों तरफ़
ये साफ़ लगता है जैसी कि उस की आँखें थीं
वो बहुत चालाक है लेकिन अगर हिम्मत करें
अगर इस खेल में अब वो भी शामिल होने वाला है
ख़राबी हो रही है तो फ़क़त मुझ में ही सारी
जो नारवा था इस को रवा करने आया हूँ
इतना मानूस भी होने की ज़रूरत क्या थी
वही मिरे ख़स-ओ-ख़ाशाक से निकलता है
मैं ज़ियादा हूँ बहुत उस के लिए अब तक भी