हर बार मदद के लिए औरों को पुकारा
या काम लिया नारा-ए-तकबीर से हम ने
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तुम अपनी मस्ती में आन टकराए मुझ से यक-दम
न उस को भूल पाए हैं न हम ने याद रक्खा है
जिस ने नफ़रत ही मुझे दी न 'ज़फ़र' प्यार दिया
न गुमाँ रहने दिया है न यक़ीं रहने दिया
झूट बोला है तो क़ाएम भी रहो उस पर 'ज़फ़र'
दिल से बाहर निकल आना मिरी मजबूरी है
इसे भी 'ज़फ़र' मेरी हिम्मत ही समझो
ईमाँ के साथ ख़ामी-ए-ईमाँ भी चाहिए
ब-ज़ाहिर सेहत अच्छी है जो बीमारी ज़ियादा है
मैं ज़ियादा हूँ बहुत उस के लिए अब तक भी
पतंग उड़ाने से क्या मनअ कर सके ज़ाहिद
हमें भी मतलब-ओ-मअ'नी की जुस्तुजू है बहुत