हर नया ज़ाइक़ा छोड़ा है जो औरों के लिए
पहले अपने लिए ईजाद भी ख़ुद मैं ने किया
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
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Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Gulzar
Wasi Shah
Jaun Eliya
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मैं बिखर जाऊँगा ज़ंजीर की कड़ियों की तरह
रफ़्ता रफ़्ता लग चुके थे हम भी दीवारों के साथ
खींच लाई है यहाँ लज़्ज़त-ए-आज़ार मुझे
किसी नई तरहा की रवानी में जा रहा था
करता हूँ नींद में ही सफ़र सारे शहर का
मुस्कुराते हुए मिलता हूँ किसी से जो 'ज़फ़र'
मौसम का हाथ है न हवा है ख़लाओं में
लम्बी तान के सो जा और
चेहरे से झाड़ पिछले बरस की कुदूरतें
कुफ़्र से ये जो मुनव्वर मिरी पेशानी है
जिस ने नफ़रत ही मुझे दी न 'ज़फ़र' प्यार दिया
इल्ज़ाम एक ये भी उठा लेना चाहिए