किरदार उस को ढूँडते फिरते हैं जा-ब-जा
गुम आ के हो गई है कहानी मिरी तरफ़
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जहाँ निगार-ए-सहर पैरहन उतारती है
झूट बोला है तो क़ाएम भी रहो उस पर 'ज़फ़र'
हम पे दुनिया हुई सवार 'ज़फ़र'
छुपा हुआ जो नुमूदार से निकल आया
वो क़हर था कि रात का पत्थर पिघल पड़ा
रूह फूँकेगा मोहब्बत की मिरे पैकर में वो
यकसू भी लग रहा हूँ बिखरने के बावजूद
इसे भी 'ज़फ़र' मेरी हिम्मत ही समझो
मुस्तरद हो गया जब तेरा क़ुबूला हुआ मैं
ख़ुशी मिली तो ये आलम था बद-हवासी का
बिखर बिखर गए अल्फ़ाज़ से अदा न हुए
रू-ब-रू कर के कभी अपने महकते सुर्ख़ होंट