तमाशा Poetry (page 13)

बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे

ग़ालिब

अज़-मेहर ता-ब-ज़र्रा दिल-ओ-दिल है आइना

ग़ालिब

आमद-ए-सैलाब-ए-तूफ़ान-ए-सदा-ए-आब है

ग़ालिब

आमद-ए-ख़त से हुआ है सर्द जो बाज़ार-ए-दोस्त

ग़ालिब

आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे

ग़ालिब

शाइरी बात नहीं गर्म-ए-सुख़न होने की

गौहर होशियारपुरी

इक रोज़ हुए थे कुछ इशारात ख़फ़ी से

फ़िराक़ गोरखपुरी

मिलों के शहर में घटता हुआ दिन सोचता होगा

फ़ज़्ल ताबिश

ये तमाशा दीदनी ठहरा मगर देखेगा कौन

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

मुद्दतों के बाद फिर कुंज-ए-हिरा रौशन हुआ

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

बहुत धोका किया ख़ुद को मगर क्या कर लिया मैं ने

फ़ारूक़ शफ़क़

आँधियों का ख़्वाब अधूरा रह गया

फ़ारूक़ शफ़क़

दिल-ए-ईज़ा-तलब ले तेरा कहना कर लिया मैं ने

फ़ारूक़ बाँसपारी

जब भी मिला वो टूट के हम से मिला तो है

फ़ारूक़ अंजुम

कोई मंज़र भी सुहाना नहीं रहने देते

फ़ारिग़ बुख़ारी

तन्हाई के आब-ए-रवाँ के साहिल पर बैठा हूँ मैं

फ़रहत एहसास

पहले तो ज़रा सा हट के देखा

फ़रहत एहसास

बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे

फ़रीद इशरती

अपनी ही निगाहों का ये नज़्ज़ारा कहाँ तक

फ़ानी बदायुनी

नाम बदनाम है नाहक़ शब-ए-तन्हाई का

फ़ानी बदायुनी

ख़ल्क़ कहती है जिसे दिल तिरे दीवाने का

फ़ानी बदायुनी

बिजलियाँ टूट पड़ीं जब वो मुक़ाबिल से उठा

फ़ानी बदायुनी

बे-ज़ौक़-ए-नज़र बज़्म-ए-तमाशा न रहेगी

फ़ानी बदायुनी

घर हुआ गुलशन हुआ सहरा हुआ

फ़ना निज़ामी कानपुरी

सब खेल-तमाशा ख़त्म हुआ

फ़हीम शनास काज़मी

वो तमाशा ओ खेल होली का

फ़ाएज़ देहलवी

जान-ए-अय्याम-ए-दिलबरी है याद

फ़ाएज़ देहलवी

जिस्म ही पामाल हो जाए तो सर क्या कीजिए

एज़ाज़ अफ़ज़ल

मिल सकेगी अब भी दाद-ए-आबला-पाई तो क्या

एजाज़ सिद्दीक़ी

उस ने देखा था अजब एक तमाशा मुझ में

एजाज़ उबैद

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