दिल-ए-ईज़ा-तलब ले तेरा कहना कर लिया मैं ने

दिल-ए-ईज़ा-तलब ले तेरा कहना कर लिया मैं ने

किसी के हिज्र में जीना गवारा कर लिया मैं ने

बुत-ए-पैमाँ-शिकन से इंतिक़ामन ही सही लेकिन

सितम है वादा-ए-तर्क-ए-तमन्ना कर लिया मैं ने

नियाज़-ए-इश्क़ को सूरत न जब कोई नज़र आई

जुनून-ए-बंदगी में ख़ुद को सज्दा कर लिया मैं ने

वफ़ा-ना-आश्ना इस सादगी की दाद दे मुझ को

समझ कर तेरी बातों पर भरोसा कर लिया मैं ने

मोहब्बत बे-बहा शय है मगर तक़दीर अच्छी थी

मता-ए-दो-जहाँ दे कर ये सौदा कर लिया मैं ने

मिला तो दीद का मौक़ा मगर ग़ैरत को क्या कहिए

जब आई वादी-ए-ऐमन तो पर्दा कर लिया मैं ने

बड़ी दौलत है हक़ के नाम पर दौलत लुटा देना

जहाँ में फूँक कर चाँदनी को सोना कर लिया मैं ने

किसी के एक दर्द-ए-बंदगी से क्या मिली फ़ुर्सत

कि दिल में सौ तरह का दर्द पैदा कर लिया मैं ने

तमाशा देखते ही देखते उन की अदाओं का

सर-ए-महफ़िल ख़ुद अपने को तमाशा कर लिया मैं ने

किसी की राह में 'फ़ारूक़' बर्बाद-ए-वफ़ा हो कर

बुरा क्या है कि अपने हक़ में अच्छा कर लिया मैं ने

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