नदीम तारीख़-ए-फ़तह-ए-दानिश बस इतना लिख कर तमाम कर दे
कि शातिरान-ए-जहाँ ने आख़िर ख़ुद अपनी चालों से मात खाई
Gulzar
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Anwar Masood
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Wasi Shah
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(702) Peoples Rate This
अल्लाह के बंदों की है दुनिया ही निराली
जो रहा यूँ ही सलामत मिरा जज़्ब-ए-वालहाना
कोहसार का ख़ूगर है न पाबंद-ए-गुलिस्ताँ
मिरी ज़िंदगी का महवर यही सोज़-ओ-साज़-ए-हस्ती
दिल-ए-ईज़ा-तलब ले तेरा कहना कर लिया मैं ने
सितारों से शब-ए-ग़म का तो दामन जगमगा उठ्ठा
ब-रोज़-ए-हश्र मिरे साथ दिल-लगी ही तो है
कभी बे-नियाज़-ए-मख़्ज़न कभी दुश्मन-ए-किनारा
ग़म-ए-इश्क़ ही ने काटी ग़म-ए-इश्क़ की मुसीबत
ख़ुशी से फूलें न अहल-ए-सहरा अभी कहाँ से बहार आई
यक़ीं मुझे भी है वो आएँगे ज़रूर मगर